Monday 12 March 2012

PRAKRUTI

खुले आसमान के निचे
चारों ओर पहाड़ों से घीरे
बहती झील को देखते
नदी का पानी बहते
गाय भैंस घांस चरते
रिम झिम रिम झिम बारिश की बूंदें
झरने के गिरते पानी से उत्पन्न तुषार होते
कभी ढक जाता आकाश बादलों से
कांपते हैं लोग बारिश में भीगने से
थोड़ी-सी सूरज की किरणों से
दिख जाता है इन्द्रधनुष ये
पेड़ों पर छुपते पंछी ये
भय से चिंतित हो जाते
मनुष्य सभी बहार निकल आते
और इस प्रकृति का माझा लेते
अनेक रूप होते हैं सृष्टि के
उसमे से यहाँ भी एक है
सर्जक हमें इस से उदहारण देते
विषम परिस्थितियों का सामना करना सिखाते
हर क्षण हमारी हिम्मत बंधाते
एवं आगे बढ़ने की प्रेरणा देते
तिनके कभी पेड़ का रूप नहीं समझते
बदल कभी आसमान की ऊंचाई नहीं जानते
झरने गिरने के लिए कभी सहारा नहीं मांगते
नदी बेहेने के लिए कभी रास्ता नहीं देखती 
आज का इंसान इस प्रकृति की ओर एक बार भी नहीं देखता ...





SPEECHLESS





Walking down the lane,
they said nothing,
she looked down,
and he followed like a lame,
the road finished,
with a dead end,
their conversation never started,
but they still intend,
to meet each other often,
and follow each other's way,
as the love between them was speechless,
so they had nothing to say!!!

Sunday 11 March 2012

uljhan

tum chahe kitni koshish karlo
log nahi badalte
badalna tumhe hi padta hai dosto
kyunki is duniya mein gam ke koi humdard nahi hote...
kahin saaf dikhe toh kahin dhundle
par rastein nahi badalte...